गुरुवार, 7 सितंबर 2017

कविता "विद्यार्थी जीवन की यादें"

                "विद्यार्थी जीवन की यादें"
*  मैं छोटा सा था
    स्कूल आते थे
    साइकिल से आप
    मेरी बद्दुआ होती थी की,
    साइकिल आपका
    पंचर हो जाए
    आप ना आए स्कूल
    हम सबों को मौज हो जाए।।
*  मां कहती थी बेटा उठो
    स्कूल जाना है।
    पर पेट दर्द के बहाने
    बिस्तर पर लेट जाता था
    नजर रहती थी घड़ी पर
    की कब 11:00 बज जाए।।
 * क्योंकि उस समय मैं बच्चा था
    बचपन मेरी कमजोरी थी
    आज सोचता हूं कि
    जिस शिक्षक के लिए
    बददूआ करता था मै
    आज वही जरुरी है।
 ऐसी भावना से मैं
    कमजोर होता चला गया
    राह भटक गया मैं
    साइकल वाले टीचर आज
    याद आ गया।
    जिस शिझक को मैं
    पहचान ना सका
    इंसान के रुप में
    भगवान मिल गया।
    बचपन की गलतियों को क्षमा करके
    उसने मुझे गले लगा लिया
 * जन्नत में था मैं उस समय
    जब लगा मैं लायक बनूंगा
    मेरी भी पहचान होगी
    खलनायक से नायक बनूंगा।
    बना भी लायक मै
    उनकी छत्रछाया में
    काबिले तारीफ हो रहा है,
    आज 5 सितंबर है
    दुनिया के सामने
    उजागर कर रहा हूं।
 * अभिनंदन है
    हे शिक्षक! आपका
    यह केशव कह रहा है
    मैं जहां हूं वही आपको
    नमन कर रहा हूँ ।
    नमन कर रहा हूँ।।
                           -:केशव झा 
   रचयिता- केशव झा 
   सोनवर्षा,बिहपुर,भागलपुर
   Mo-83 40 70 42 40
   काॅपीराइटर- स्वंय सुरक्षित 
   नोट-            इस रचना की नकल ना करे।

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