* मन की राही रे
तू देख जरा पथ को।
इन पथ फूल नहीं
कांटों से यह बोया है
मन की राही रे,
तू देख जरा पथ को।।
* इस पथ पर चलना है मुश्किल
मंजिल बहुत विराना है
सोच तुझे क्या करना है
क्योंकि तुझे अभी चलना है।
मन की राही रे,
तू देख जरा पथ को।।
* यह पथ है लोभो का डेरा
क्रोध इनका दीवाना है।
ईश्या रूपी गांव बसा है
छीन-झपट कर खाता है।।
मन की राही रे,
तू देख जरा पथ को।
* यहां की कानून बड़ी निराली
मन की मर्जी से चलता है।
ऊंच-नीच,जात-पात
सभी में भेद-भाव रखता है।
मन की राही रे,
तू देख जरा पथ को।।
* तू जैसा बोया वैसा पाया
अभी कुछ न बिगड़ा है।
उठ पथ को तू साफ कर
जिस पथ पर तुझे चलना है।
मन की राही रे,
तू देख पथ को।।
* इन सबसे से तुम नाता तोडो
आगे की राह दिखाता हूं।
कभी न रूकना कभी न थकना
चाहे तूफान आ जाए,
बढते रहना मंजिल की ओर
लगेगा मंजिल सुहाना है।
मन की राही रे,
तू देख जरा पथ को।।
-:केशव झा
रचयिता-केशव झा
सोनवर्षा,बिहपुर,भागलपुर
Mo-83 40 70 42 40
काॅपीराइटर- स्वंय सुरक्षित
नोट- इस रचना की नकल ना लिखें ।
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