* मै तो मार्ग-भ्रष्ट गवार था
आपने मुझे चमकदार बना दिया।
आप शाहजहां थे,
मुझे ताजमहल बना दिया।
हे शिक्षक! एहसान है आपका
इस मिट्टी की मूरत को,
इंसान बना दिया।।
* एक गवारा सा था पहचान मेरी
मूढ था ज्ञान मेरा।
आज ऐसी हस्ती हूँ मैं,
मुझे इस दुनिया में पहचान दिला दिया।
हे शिक्षक! एहसान है आपका
इस मिट्टी की मूरत को,
इंसान बना दिया।।
* रोता था मै अपनी किस्मत पर
मेरी हालात थी कुछ ऐसी बद्तर।
राह चलता था ठोकरें खाते-खाते
मेरी राहों को फूलों से सजा दिया।
हे शिक्षक! एहसान है आपका
इस मिट्टी की मूरत को,
इंसान बना दिया।।
* दुनिया अंधेरी लगती थी मेरी
मुंह से निवाला छिनता चला गया।
अब निवाले की क्या बात करूं मैं,
भंडारे के लायक बना दिया।
हे शिक्षक! एहसान है आपका,
इस मिट्टी की मूरत को,
इंसान बना दिया।
* भटक रहा था कोयले की खानों में मैं,
किसी पत्थर की भांति
आपने तरासा इस हीरे को
और कोहिनूर बना दिया।
हे शिक्षक! एहसान है आपका,
इस मिट्टी की मूरत को
इंसान बना दिया।
इंसान बना दिया।
* भटक रहा था कोयले की खानों में मैं,
किसी पत्थर की भांति
आपने तरासा इस हीरे को
और कोहिनूर बना दिया।
हे शिक्षक! एहसान है आपका,
इस मिट्टी की मूरत को
इंसान बना दिया।
* नमन करता है केशव आपको
वंदन करता है केशव आपको।
जिस राह भटके मुसाफिर को
आज आपने,
महान बना दिया।
हे शिक्षक! एहसान है आपका
इस मिट्टी की मूरत को,
इंसान बना दिया।।
इस मिट्टी की मूरत को,
इंसान बना दिया।।
-:केशव झा
5 सितंबर 2017 को
शिक्षक दिवस एवं भारत के पूर्व राष्ट्रपति
"सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णन" के जयंती
के उपलक्ष्य मे मेरे द्वारा रचित 'कविता '
सभी आदरणीय शिक्षक गणों को सप्रेम समर्पित
धन्यवाद
रचियता- केशव झा
सोनवर्षा,बिहपुर,भागलपुर
Mo-83 40 70 42 40
काॅपीराइटर- स्वंय सुरक्षित
सोनवर्षा,बिहपुर,भागलपुर
Mo-83 40 70 42 40
काॅपीराइटर- स्वंय सुरक्षित
नोट - इस रचना की नकल ना करे
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