"मेरी अभिलाषा"
* मन करता सरगम बन कर
वीरों का मैं मन बहलाऊं।
गर रुठे भारत माँ तो,
सात सुरों से उन्हें मनाऊं।।
* मन करता नीरद बन कर
उमर-उमर कर घूमता जाऊं।
तपी दुपहरिया मे भारत माँ को,
पावस वारि से नहलाऊं।।
* मन करता पौधा बन कर
महि को हरियल कर जाऊं।
मारुत आवे झूम झूम के
भारत माँ पर शीश झुकाऊं।।
* मन करता अंजन बन कर
सबकी आँखौ मे बस जाऊँ।
नजर लगे भारत माँ को तो
बुरी नजर से उन्हें बचाऊं।।
* मन करता है उपवन बन कर
मधुकर को मैं ललचाऊं।
इस उपवन की फूलों से,
भारत माँ की श्रृंगार कराऊं।।
* मन करता पायल बन कर
झनक-झनक-झन मैं बजता जाऊं।
भारत माँ के पग मे बंधकर
जन्म-जन्म का कर्ज चुकाऊं।।
* मन करता मलयज बन कर
नंदन वन मे बस जाऊं।
तिलक रूप मे भारत माँ की,
मस्तक की शोभा बन जाऊं।।
* मन करता हैं इससे अच्छा
भारत माँ के लाल बनू।
रौद्र रूप धारण करके मैं,
दुःशमनो का काल बनू।।
-:केशव झा
रचियता- केशव झा
सोनवर्षा,बिहपुर,भागलपुर
Mo-83 40 70 42 40
काॅपीराइटर-स्वंय सुरक्षित
नोट- इस रचना की नकल ना लिखें ।
* मन करता सरगम बन कर
वीरों का मैं मन बहलाऊं।
गर रुठे भारत माँ तो,
सात सुरों से उन्हें मनाऊं।।
* मन करता नीरद बन कर
उमर-उमर कर घूमता जाऊं।
तपी दुपहरिया मे भारत माँ को,
पावस वारि से नहलाऊं।।
* मन करता पौधा बन कर
महि को हरियल कर जाऊं।
मारुत आवे झूम झूम के
भारत माँ पर शीश झुकाऊं।।
* मन करता अंजन बन कर
सबकी आँखौ मे बस जाऊँ।
नजर लगे भारत माँ को तो
बुरी नजर से उन्हें बचाऊं।।
* मन करता है उपवन बन कर
मधुकर को मैं ललचाऊं।
इस उपवन की फूलों से,
भारत माँ की श्रृंगार कराऊं।।
* मन करता पायल बन कर
झनक-झनक-झन मैं बजता जाऊं।
भारत माँ के पग मे बंधकर
जन्म-जन्म का कर्ज चुकाऊं।।
* मन करता मलयज बन कर
नंदन वन मे बस जाऊं।
तिलक रूप मे भारत माँ की,
मस्तक की शोभा बन जाऊं।।
* मन करता हैं इससे अच्छा
भारत माँ के लाल बनू।
रौद्र रूप धारण करके मैं,
दुःशमनो का काल बनू।।
-:केशव झा
रचियता- केशव झा
सोनवर्षा,बिहपुर,भागलपुर
Mo-83 40 70 42 40
काॅपीराइटर-स्वंय सुरक्षित
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